ये कैसा एहसास है, ये क्या किस्सा है? अब तक मुझे थक जाना चाहिए था। उस रोज़ बेहद बारिश हो रही थी, मै तुम्हे भूलने के लिए किसी और से मिल रही थी। उस रोज़ पहली दफा मैं उससे मिलने जा रही थी, रास्ते में यही सोच रही थी कि तुम्हारे बारे में उसको बताऊं या नहीं? कहीं उसने मेरे अतीत के बारे में पूछ लिया तो? फिर वही मैने अपनी कॉन्फिडेंट रहनी वाली एक्टिंग शुरू कर दी, बाहर देखा तो हर जगह कीचड़ और पानी। तुम जानते हो न मुझे बारिश पसंद नहीं है। खैर, मै हिम्मत जुटा कर मंज़िल पर उतर कर एक लम्बी सांस भरकर अन्दर गई। और श्याद उसने मुझे बाहर से ही देख लिया था वो दरवाज़े के थोड़ा आगे ही खड़ा था। वो मुस्कुराया मैं भी मुस्कुराई और साथ ही हम टेबल तक पहुंचे। वहां मैने देखा मेज़ पर लिलीज़ और फ्रैपे है। मैं उसे देख कर मुस्कुराई और उसने वो लिलीज़ मुझे दिए ये कहकर कि एक दफा तुमने बताया था कि तुम्हे लिलीज़ गुलाब से ज़्यादा पसंद है। और चूकी मुझे इनकी आदत नहीं है मुझे समझ नहीं आया मैं जवाब क्या दू तो मैने शुक्रिया कहना ही मुनासिफ समझा। अब हम दोनों एक ही मेज़ पर बैठे थे, वो उस रोज़ की बारिश को खूबसूरत बता रहा था और मैं वहां सोच रही थी कि तुम होते तो ये कभी नहीं कहते। ना तुम्हे बारिश पसंद है ना मुझे, और तभी उसने वो फ्रेपे मुझे ऑफर करी। मेरे मना कहने पर भी वो नहीं माना, तभी उसने मुझे ही कुछ और चुनने के लिए कहा और मैंने केवल कैपेचिनो ऑर्डर करी। तभी वो हसा और कहा कि ” सॉरी मुझे पता नहीं था तुम्हे फ्रैपे पसंद नहीं है”। मैने भी कहा “अरे। ऐसा कुछ नही है, सॉरी की क्या बात है”। वो मुझसे मेरे हर पसंदीदा चीज़ पूछ रहा था और मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि कोई मेरा इतना ख्याल भी कर सकता वो भी पहली मुलाक़ात में। हालांकि सभी लड़के पहले पसंद नापसंद ही पूछते है मगर वो कुछ अलग था। उसने मुझसे मेरे पसंदीदा लेखक, कविता, श्यार भी पूछे जिनमें उसकी रुचि भी नहीं थी। कुछ देर यूंही बाते चली, तुम्हारा ख़्याल भी अब हवा हो गया था। थोड़ी देर बाद उसका फोन बजा, उसकी मम्मी उससे इतनी बारिश में बाहर ना निकलने की हिदायत दे रही थी। फिर उसने कहा “हा उसी के साथ हूं, अभी कुछ देर पहले ही आई है वो।” मुझे समझ नहीं आया और फोन काटते ही मैने पूछा “तुम्हारी मां को पता है तुम मेरे साथ बाहर हो? “हा, मै उनसे कभी झूठ नहीं कहता।” “इतना सच, ये सब भी बताते हो। ज़्यादा हो रहा है ये तो।” वो हसने लगा, “नहीं। मैं उन्हें हमेशा सच बताता हूं। मेरे पास झूठ बोलने का कोई कारण नहीं है।” “तो अब बताओ कि तुम यहां कैसे आ गई आज?” मैं अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाई थी कि तुम्हारा ज़िक्र करू या नहीं। तभी उसने कहा “कौन हैं वो? महज़ झगड़ा होता तो तुम यहां तक नहीं आती, कुछ तो है!” “जब जानते हो तो नहीं बात करते है इस बारे में।” “तो मैं गेट ओवर का जरिया हूं, मैं तुम्हे पसंद करता हूं इसलिए आया हूं और तुम उसे नापसंद करना चाहती हो इसलिए आई हो। है ना?” “मै उसे नापसंद करने नहीं, भूलने आई हूं।” “मगर भूलना क्यों है” “क्यूंकि बेहद मुश्किल उसको याद करके ज़िंदा रहना, हर जगह मुझे उसी का ख़्याल आता है, अपनी खुशी से ज़्यादा उसकी खुशी मायने रखती हैं।” “तो इसमें दिक्कत क्या है, जो भूल नहीं सकती तो माफ़ कर दो उसको और मान लो कि तुम वो दर्ज़ा रखती ही नहीं उसकी ज़िन्दगी में जिसका तुम्हे अंदाज़ा है”। “आसान है क्या?” “मान लेगी तो आसान होगा, ज़िद करोगी तो खुद ही पछताओगी” और उस पल सब चुप था, दिमाग दिल वो मैं। श्याद मैं ही खुदको वहां रख चुकी थी जहां मैं कभी थी ही नहीं। फिर कुछ देर यही बातें चली, और अब निकलने का वक़्त हो चला था। बारिश रुक गई थी, उसे भी घर निकलना था। मैने शुक्रिया और माफी दोनों बोल दिए। वो तो बस इसी बात से खुश था मैं आई और कहा “देखो, तुम मुझसे कुछ भी कह सकती हो, मैं तुम्हे पसंद करता हूं मैं जानता हूं तुम ऐसा कुछ मेहसूस नहीं करती मगर मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है। तुम्हारा खुश रहना ज़्यादा जरूरी है।” फिर हम दोनों अपने अपने रास्ते चल दिए। रास्ते में तुम्हे याद करके तुम्हें कोस नहीं रही थी बल्कि हस रही थी। श्याद तुम्हे भूलना जरूरी नहीं है तुमसे उभरने के लिए।