शायद
औरतों को इसलिये पहनाये गये
घुंघरू वाली पायल
बजने वाले कंगन
आवाज़ करते झुमके
और सारे गहने
कि नज़र रखी जा सके उनपर
बिना उन्हें देखे भी.
जैसे वो घर से बाहर तो नहीं चली गयी
जैसे वो घूँघट में भी गुस्से से गर्दन तो नहीं झटक रही
जैसे उसे आवाज़ दी जा सके उसकी घर में मौजूदगी पहचान कर
जैसे आदमी सुन कर उसके उठने की आवाज़ सो जाये देर तक
और जैसे सास अंदाजा लगा पाये रसोई में उसके काम का.
मुझे लगता है
औरतों को आज़ादी के लिये सबसे पहले
हथियार उठाने की जगह
गहने उतारने चाहिए.