हिंदी का विकास

हिंदी का विकास”

हम आज आधुनिक दौर में हैं, साहित्य भी समय के साथ बदल रहा है | मगर! क्या हमें इस बदलते युगों के साथ उन अग्रणियों को भूल जाना चाहिए? जिनकी वजह से आज साहित्य की एक पहचान है, नहीं! बिलकुल भी नहीं क्योंकि इन साहित्यकारों ने ही हमें साहित्य समझने और सोचने की दिशा दी है और इसलिए हम Pioneers of Literature (भूले-बिसरे लोग) के जरिये ऐसे व्यक्तित्व को आप सब के सामने लेकर आएंगे जिन्होंने हिंदी साहित्य की चिंगारी नौजवानों के भीतर जलाई और भाषा की समझ दी, अपने विचारों को सही और सजग तरीके से रखने की ताकत दी |
लेकिन इन विद्वान रचनाकारों को आहूत करने से पहले जरूरी है की हम हिंदी की उत्पति के बारे में जाने ।

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हिन्दी भाषा आज की आधुनिक आर्य भाषाओं में से एक है | हिन्दी अनुमानतः तेरहवीं शताब्दी से साहित्य में आई | इसके पहले अनेक भाषाओं ने साहित्य में अपना योगदान दिया है | वैदिक संस्कृत आर्य भाषा का प्रचीनतम रूप है, जिनमें वेद, संहिता और उपनिषदों की रचना हुई | इसके साथ ही बोलचाल की भाषा लौकिक संस्कृत रही, जिसे बाद में साहित्य के रचनाओं में भी उपयोग लाया गया | रामायण और महाभारत इसी भाषा में रचित हैं | ” आज इनकी अनुवादित प्रति भी बाजार में खूब मिलते हैं ” | संस्कृत का साहित्य विश्व का सबसे समृद्ध साहित्य माना जाता है | वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, अश्वघोष, काव्यशास्त्र के रचयिता आचार्य भरतमुनि, मम्मट, दंडी, आनंदवर्धन, विश्वनाथ संस्कृत के महान विद्वान रहे हैं | संस्कृत के बाद पाली और फिर प्राकृत होते हुए अपभ्रंश के माध्यम से हिंदी आई और यही हिंदी भारत में आज निर्णायक भाषा है।

हिन्दी शब्द सभी भाषा शास्त्रियों ने नदी विशेष सिंधु से माना है। इसका अर्थ यह हुआ कि हिंदी शब्द का संबंध सिंधु नदी से मानने में कोई आपत्ति नहीं है। ईरान से आने वाले व्यापारियों ने ध्वनि परिवर्तन के नियम से इस शब्द को हिंदू नाम से उद्बोधित किया। प्राचीन काल में ईरान के व्यापारी जब भारत के संपर्क में आए तो सिंधु नदी के तटवर्ती प्रदेश सिंध और नदी विशेष शब्द सिंधु को ध्वनि परिवर्तन के द्वारा हिंदू कहने लगे, इस हिंदू शब्द में "इक" प्रत्यय लगने से "हिंदीक" शब्द की उत्पत्ति हुई। इसी हिंदीक शब्द में कुछ अंतराल के बाद ‘क–वर्ण’ का लोप हो गया और बचा केवल ‘हिन्दी शब्द’।
अंत में बचा शब्द हिंदी जिसका अर्थ हुआ हिंद से संबंध रखने वाला। आज यही हिंदी शब्द संपूर्ण भारतवर्ष का वाचक शब्द है।

हिन्दी शब्द का विकास आज हम भाषा के रूप में ग्रहण करते हैं यह भाषा वैज्ञानिक, शब्द और इसका क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। सभी विद्वान एक स्वर से हिंदी भाषा को एकमात्र वह भाषा मानते हैं जो समस्त भारतवर्ष को एक सूत्र में बांधने का कार्य करती है।
हिन्दी भाषा का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है और इसी भाषा को प्रत्येक निवासी भावात्मक और पारस्परिक विचारों के आदान-प्रदान हेतु बोलता है, सुनता है, लिखता है और इसी भाषा में चिंतन भी करता है। अतः हिंदी भाषा संपूर्ण समाज को जोड़ने वाली भाषा है और यही हिंदी, संस्कृत, प्राकृत, पाली और अध्ययन से विकसित होते हुए आज संपूर्ण भारत में साहित्य, बोलचाल और मीडिया की भाषा है।
ऐतिहासिक दृष्टि से हिंदी को पांच भागों में विभाजित किया गया है इसे हम नाम देना चाहे तो क्षेत्रीय रूप में कह सकते हैं, इसे और अधिक नाम देना चाहे तो अपभ्रंश की बोलियां कह सकते हैं किंतु इन सब का विभाजन इस प्रकार किया गया है कि हिंदी भाषा परिवार के समान हमें दिखलाई पड़ती है। अनेक विद्वानों ने इसे आधुनिक भाषा तक कहा है किंतु हम यदि अपने शब्दों में कहना चाहे तो कह सकते हैं अखिल भारतीय स्वरूप में जिस भाषा का प्रयोग कवियों और साहित्यकारों ने किया है वह निश्चित रूप से आधुनिक भारतीय भाषा के नाम से जानी जाए।
हिंदी भाषा भौगोलिक दृष्टि से मध्य राष्ट्र की भाषा है यही हिंदी अनेक परिवर्तनों के उपरांत आज हमारे सम्मुख उपस्थित है।

इकबाल कवि ने तो यहां तक कहा है–
“हिंदी हैं हम , वतन है हिंदोस्ता हमारा”!

आज हिंदी भाषा समस्त भारतवर्ष में बोलने, विचार करने एवम् एक–दूसरे से संपर्क करने के लिए प्रयोग की जाती है।
हिन्दी भाषा और इसकी उत्पत्ति –
अपभ्रंश की बोलियां/ क्षेत्रीय रूप ––––– विकसित भारतीय भाषा

  1. शौरसेनी अपभ्रंश – पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, पहाड़ी, गुजराती
  2. पैशाची – लहंदा, पंजाबी
  3. ब्राचड़ – सिंधी
  4. महाराष्ट्री – मराठी
  5. मागधी – बिहारी, बंगला, उड़िया, असमिया
  6. अर्धमागधी – पूर्वी हिंदी

अगर आप अर्धमागधी, मागधी और शौरसेनी को देखें तो उससे उत्पन्न भाषाएं ही आधुनिक हिंदी की जननी रही होंगी |

हिंदी ", जिसे हमें विलुप्त होने से अब बचाना है। वैश्वीकरण ने हिंदी के प्राण पर व्यापक आघात किए हैं हिंदी अपनी विराटता व उदारता के कारण अनुपम और अद्भुत है। आधुनिक युग में महत्वता कम हुई है पर अनंतकाल से सभी विरुद्धों का सामंजस्य आत्मसात कर लिया है और अपनी उज्जवल चेतना और साहित्य से संपूर्ण जगत को ज्योतिर्मय दृष्टि प्रदान कर रही है।
"संपादन"
केतन कुमार मिश्र !
अविरल अभिलाष!!

About The Author(s)

I am an Entrepreneur, and currently, I am a Founder & Director at Unvoiced Media And Entertainment private limited.
Skilled in Acting, Hindi, Literature, Editing, and Writing. Reliable media and communication professional with an Integrated M.Sc focused in Environmental Science from the Central University Of Rajasthan

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