“अकेले चलने का हुनर जानते हैं हम ”
ऐ मेरे हमनवा, मेरे हमराज तू सुन ले,
तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता हमसे, तो हमें भी कोई फर्क नहीं पड़ता तुमसे,
एक जमाना था, जब तुझसे बिछड़ जाने से डरते थे हम,
लेकिन अब तू सुन ले,
कि, तुम्हारे हर लफ्ज़ से इतनी चोट खाई है हमने,
अब हजार मर्तबा कोई छोड़ जाये,
तो भी, पाने और खोने की कोई फिक्र नहीं है हमको,
अकेले चलने का हुनर जानते हैं हम,
ऐ मेरे हमनवा, मेरे हमराज तू सुन ले,
तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता हमसे, तो हमें भी कोई फर्क नहीं पड़ता तुमसे।।
अब ना रोयेंगे, ना रुठेंगे और ना टूटेंगे हम,
कि, अच्छा हुआ तुमने हमें, जो बेवफा बताया है,
गीत, गज़लें और ऩज़में, अपने ही हिस्से में पाया है हमने,
इनको हंसकर गले लगाना जानते हैं हम,
अब हमें भी सुनने वालों और तस़हीन देने वालों की भीड़ न होगी कम,
ऐ मेरे हमनवा, मेरे हमराज तू सुन ले,
तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता हमसे, तो हमें भी कोई फर्क नहीं पड़ता तुमसे।।
जो कोई आसानी से तोड़ जाये, वो शीशा नहीं है हम,
हम वो पत्थर है, जिसमें हीरा तराशना जानते हैं हम,
कि, इतना गुरुर है खुद पर तुमको,
लेकिन अब तू सुन ले,
अब अपने ही हुनर से आगे बढ़ने का मगरुर है हमको,
गर, कोई हमारे पांव खींचे पीछे,
उनको अंजाम देना जानते हैं हम,
ऐ मेरे हमनवा, मेरे हमराज तू सुन ले,
तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता हमसे, तो हमें भी कोई फर्क नहीं पड़ता तुमसे।।
कौन छूटा, कौन रुठा, अब न कोई होगा गम,
खुद की खुशियाँ ढूँढना जानते हैं हम,
बहुत आजमाया है तुमने हमें,
बेवफाई का सिला, जो दिया है हमको,
लेकिन अब तू सुन ले,
जाओ अब औरों को आजमाकर देख लो तुम,
अपने ही सपनों को साकार करना जानते हैं हम,
ऐ मेरे हमनवा, मेरे हमराज तू सुन ले,
तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता हमसे, तो हमें भी कोई फर्क नहीं पड़ता तुमसे।।
जिसने हमको तरसाया है, वो भी तरसेंगे अब,
लेकिन अब तू सुन ले,
जहाँ हमारी इज्ज़त होगी, वहाँ बादल बनकर बरसेंगे हम,
इतने भी कमजोर नहीं है हम,
हौसलों के बल पर उड़ान भरना जानते हैं हम,
गर, कोई हमारे ऊपर झूठे दाग लगाऐ,
तो भी, कोई फर्क नहीं पड़ेगा हमको,
खुद से वादा किया है हमने,
कि, अपनी ही निगाहों में बेदाग रहना जानते हैं हम,
ऐ मेरे हमनवा, मेरे हमराज तू सुन ले,
तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता हमसे, तो हमें भी कोई फर्क नहीं पड़ता तुमसे।।
किसी के लफ्ज़ों की जरुरत नहीं है हमको,
दुनिया का हर चेहरा पढ़ना जानते हैं हम,
राधा-सा भी, मीरा-सा भी, हर विरह मंजूर है हमको,
हर प्रियसी बने रुक्मिणी, वो श्याम नसीब नहीं है सबको,
हमारे दिल का दीप बुझाया है तुमने,
लेकिन अब तू सुन ले,
अब हर महफ़िल में शमा जलाना जानते हैं हम,
ऐ मेरे हमनवा, मेरे हमराज तू सुन ले,
तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता हमसे, तो हमें भी कोई फर्क नहीं पड़ता तुमसे।।
Good…. ❤❤
Thanks dear 😍
So nice poem dear, i like your poem, tumhari har poem se mujhe himmat or motivation milta, so thank u so much my dear sister
Bhut acha likha h…. I’m lucky person u are my Gd frnd….. Missing u..
Thanks dear 😘miss u too
Wonderful sista,,, 😍😍 soo sweet line’s 👌👌👌🤗i am soo happy 😋😋tu ese hi lhikhti✍️✍️ rhana bs 😎💓💓💓
👌👌👌👌👌👌
Very nice dear
Nice line
Very nice poem my dear sister, i like your poem, tumhari har poem se mujhe himmat or motivation milta h my dear, thank u so much my dear
Nice line
Nice yrr 👌👌👌👌👌