“माँ की मोहब्बत”

~~~”माँ की मोहब्बत “~~

“ग़ज़ल “

भरने को तो हर जख्म भर जाता है,
मगर, माँ जो मरहम लगाती हैं, वो”दवा”माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

मेरे शब्दों में हर शब्द की इक मंजिल लिख दूँ मैं,
मगर, संस्कार और तहज़ीब जो सिखाती हैं, वो “शब्दकोश “माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

अदालत के फैसलों में सदियों वक्त लगता है,
मगर, पल भर में ही जो अपना फैसला सुनाती हैं, वो”अधिवक्ता”माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

हम तो दिनकर-सी तपश को उगलते रहते है,
मगर, उस तपश को भी साथ लिए, शशि -सम शीतलता जो झलकती हैं, वो”आनन”माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

क्ई रिश्तों को गलतफहमियाँ ही तोड़ देती है,
मगर,खुद में उलझकर के जो रिश्ते सुलझाती हैं, वो”बाजीगर-सा जादू”माँ के सिवा कहीं ओर नहीं !!

बिगड़ते हालातों में हमारी जिव्हा भी बंद हो जाती है,
मगर, जो हर खामोशी को भी आसानी से पढ़ लेती हैं, वो “अंतर्यामी “माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

यूँ तो मोहब्बत हर कोई जताता है,
मगर, मोहब्बत में भी तमाम मोहब्बतों का जो जाल बनाती हैं, वो”इश्क़बाज़”माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

यूँ तो धरा पर भी इक सागर फैला हुआ है,
मगर, चश्म में जो सम्पूर्ण सिंधु समाती है, वो”मज्जक”माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

हजारों दीपक मिलकर के एक आरती सजाते है,
मगर, अकेली माँ बच्चों की जिंदगी जन्नत बनाती हैं, वो”फरिश्ता”माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

हजारों गुल खिलकर के इक गुलशन बनाते है,
मगर, माँ जहाँ पांव धरती हैं, वो हर जगह गुलशन बन जाती हैं, ऐसा “स्वर्ग “माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

हजारों बूंद मिलकर के एक समन्दर बनाती है,
मगर, इक माँ अपने घर को सुरलोक बनाती हैं, वो”कारीगर”माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

यूँ तो मंदिर-मस्जिद में शंख, घंटिका और इकतारा बजता है,
मगर, जब पायल, कंगना और चूड़ी की झंकार से पूरा घर गुँजता हैं, वो”शहनाई-सा सुर”माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

खुदा ने एक ब्रह्माण्ड रचाया है,
मगर, माँ की दो भृकुटी के बीच में बूंद -सी बिंदी में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाया हैं, वो”शाश्वत ब्रह्माण्ड”माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

हम हर ख्वाईश पूरी करने की जिद्द करते है,
मगर, माँ हर रोज सिदूंर-रेखा में सौ अरमान दफन करती हैं, वो “सहनशक्ति “माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

यूँ तो हम हर वर्ष सब रंगों की होली खेलते है,
मगर, माँ जब मेंहदी लगाती हैं, एक रंग में सम्पूर्ण रंग बसाती हैं, वो”रंगोली”माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

पूजा-पाठ, वृत और रोजा हम हर रोज करते है,
मगर, बिन मांगे जो आशीर्वाद देती हैं, वो”दुआ”माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

दुनिया का हर सुकून तलाश किया है हमने,
मगर, माँ के “आँचल-सा”सुकून माँ के सिवा कहीं ओर नहीं!!

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3 Comments

  1. बहुत सुंदर शब्द कहे हैं लाइनों में मेरी और से प्रणाम

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