देवनागरी लिपि के दोष ––
- शिरोरेखा का प्रयोग वर्जित है या होना चाहिए क्योंकि यह अनावश्यक और केवल अक्षरों की सजावट को ही प्रस्तुत करता है।
उपाय :– शिरोरेखा के माध्यम से अनेक वर्णों के परस्पर भेद को सूचित किया जाता है। शिरोरेखा दिशा देती है कि ‘भ’ और ‘म’ में अंतर है, इसी प्रकार ‘घ’ और ‘ध’ में अंतर है। अतः शिरोरेखा के माध्यम से स्थिति स्पष्ट हो जाती है। - वर्ण की अधिकता, आलोचक वर्ण की अधिकता को देवनागरी लिपि का दूसरा प्रमुख अपवाद मानते हैं। यदि देवनागरी लिपि में वर्ण अधिक हैं तो यह संकेत सरलता का सूचक है इसे दोष नहीं मानना चाहिए।
उपाय:– नगरी में वर्णों की संख्या इसीलिए अधिक है क्योंकि पहली शर्त है कि संपन्न भाषा अपने प्रत्येक वर्ण के लिए स्वतंत्र चिन्ह प्रस्तुत करती है।
जहां रोमन लिपि में ‘C’ और‘K’, ‘J’ और ‘G’, अलग-अलग शब्दों का निर्माण करते हैं हिंदी में अधिक वर्ण रोमन की भांति भ्रम की स्थिति उत्पन्न नहीं करते।
दूसरा प्रमुख कारण यह है कि वैदिक संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश और अन्य भारतीय भाषाओं से इसके शब्दों में विकास हुआ है ध्वनि संख्या किसी लिपि का दोष नहीं बन सकती। - अनुस्वार एवं अनुनासिक के विषय में आरोप, नागरी की लिपि में बिंदु एवं चंद्रबिंदु का प्रयोग उन व्यंजनों के लिए किया जाता है जो नासिक्य ध्वनि हैं।
नासिक्य, स्पर्श वर्ण के साथ अपनी सूचना स्वयं देता है। इसीलिए जितना अधिक हो सके अनुस्वार और अनुनासिक का प्रयोग करना चाहिए। - ‘र’ की रूप भिन्नता– नागरी लिपि में आलोचक ‘र’ को लेकर चिंतित हैं,यदि सर्वत्र ‘र’ का प्रयोग किया जाएगा और उसका रूप एक ही रहेगा तो दोष उत्पन्न होना स्वाभाविक है।
जैसे:– राम, प्राण, जर्जर, राष्ट्र, गृह यह ‘र’ की भिन्नता दर्शाते हैं।
उपाय:– वस्तुतः ‘र’ के चारों रूप स्वाभाविक हैं। यदि व्यंजन और उसकी स्थिति खड़ी पाई के अनुसार है तो वह खड़ी पाई के व्यंजन के साथ ही लगेगा।
जैसे:– प्राण, प्रेम, क्रम और क्रमांक आदि।
यदि ‘र’ का प्रयोग व्यंजन से पूर्व आने की सूचना देता है तभी वह शिरोरेखा के ऊपर दूसरे व्यंजन के ठीक ऊपर स्थित होकर प्रकट होता है।
जैसे :– धर्म, कर्म, मर्म आदि शब्द शिरोरेखा की उपयोगिता और ‘र’ के रूप को विभाजित करते हैं।
ऐसी स्थिति में देवनागरी लिपि को रोमन से हीन कैसे कहा जा सकता है??
अंतरराष्ट्रीय लिपि के रूप में नागरी :–
देवनागरी संसार की समस्त उपलब्ध लिपियों की अपेक्षा अधिक व्यंजन के कारण अपना विशेष स्थान रखती है। संसार की प्रत्येक भाषा के लिए किसी न किसी लिपि के द्वारा मनुष्य समाज अपनी अभिव्यक्ति प्रकट करता है यदि देवनागरी में उपलब्ध वर्ण और उनकी संख्या अधिक है तो वह अधिक स्पष्टता के साथ मनुष्य समाज के भावों को प्रस्तुत करने का साहस करती है।
नागरिक का स्वरूप हमें वर्णात्मक और अक्षरात्मक दिखाई देता है। इसके साथ– साथ नागरी में स्वरों की मात्राओं का वैज्ञानिक विधान वह अनोखा अनुसंधान है जो हमें उपलब्ध संसार की समस्त लिपियों से विशिष्ट स्थान दिलाती है।
नागरी लिपि में संस्कृत जैसी प्राचीन लिपि का भी यह आधारभूत साधन रहा है और वही भारतीय भाषाओं के लिए भी सफलता का सूचक बना है। प्रायः लिपि विज्ञान के समस्त आचार्यों ने गहन अध्ययन के उपरांत इस तथ्य को प्रशंसित किया है कि नागरी आदर्श लिपि है।
इस आदर्श और वैज्ञानिक लिपि में सभी गुण विद्यमान हैं। प्रत्येक राष्ट्र अपनी भाषा और लिपि को लेकर गर्व महसूस करता है, यह बात देवनागरी लिपि के संदर्भ में उचित है। अंतरराष्ट्रीय अंक तालिका पर भी रोमन के साथ सामंजस्य बिठाने पर इस लिपि की विशेषता प्रकट होती है। अतः सूक्ष्मतापूर्वक विचार करने पर और तटस्थ दृष्टि से मूल्यांकन करने पर देवनागरी लिपि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक आदर्श लिपि के पद पर स्थित होने की अधिकारिणी है।
आदर्श लिपि के गुण और देवनागरी लिपि:–
आदर्श शब्द का सामान्य अर्थ है– सभी के लिए अनुकरण के योग्य। लिपि के रूप में आदर्श शब्द की उपयोगिता यही है कि संसार की समस्त लिपियों में एक गिने जाने वाली देवनागरी लिपि आदर्श लिपि की अधिकारिणी है।
कालक्रम के अनुसार अनेक लिपियां अपने विकास को प्राप्त होती हैं। भाषा वैज्ञानिक एक आदर्श लिपि में जिन गुणों और विशेषताओं को उद्धृत करते हैं, वह आदर्श लिपि कहलाती है। इस संदर्भ में देवनागरी लिपि की परीक्षा करते हैं:–
- आदर्श लिपि वह है जो सीखने में सरल हो, सहज हो और प्रयत्न करने पर निवासी उसे लिखने के अभ्यस्त हो जाएं।
सरल का अर्थ उलझन नहीं है, सरल का अर्थ भ्रम की स्थिति नहीं है, सरल का अर्थ है, जो व्यंजन, जो ध्वनि जिस प्रकार प्रचलित हो वह उसी अनुपात में आंखों के सामने लिखित रूप में आए और पढ़ी जाए। - आदर्श लिपि का गुण यह है कि वह अपने नाम के अनुकूल सीखने में भी सरल हो, एक व्यंजन अपने साथ दो अक्षरों की स्थिति लेकर प्रस्तुत न हो।
रोमन में ‘G’ और ‘J’ संदर्भ के साथ भिन्नता प्रकट करते हैं। देवनागरी इस दृष्टि से भी आदर्श है देवनागरी में वर्णमाला को देखने से सभी वर्ण पूर्ण नियंत्रित हैं, किसी में भ्रम की स्थिति उत्पन्न नहीं होती। - आदर्श लिपि पूर्ण मंतव्य प्रकट करने वाली होती है नागरी लिपि में यह विशेषता है कि मनुष्य समाज के अनंत भावों को अनंत अक्षरों (अर्थ) द्वारा प्रकट कर सकती है।
- पंचम अनुस्वार की दृष्टि से देवनागरी लिपि को आदर्श लिपि माननीय में रोमन की तुलना में आरोप लगाने वाले अधिक हैं जबकि अनेक संशोधन के उपरांत इन दोषों को भी सूचना और निर्देशों द्वारा परिवर्तित कर दिया गया है।
- गतिमान की दृष्टि से आदर्श लिपि का गुण उसकी लेखन सकती है। क्या संसार की प्रत्येक लिपि देवनागरी लिपि से कंगन सीमा में लिखी जाती है? चीनी, जापानी या इनसे मिलती संसार की अन्य लिपियां नागरी से श्रेष्ठ हैं?
आदर्श लिपि शिरोरेखा विहीन लिखकर क्या गति सीमा की कसौटी पर संक्षेप स्थिति को जन्म देती है ऐसा प्रतीत होता है कि लिपि के लिए क्या सुंदरता विभाजक गुण है।
देवनागरी आदर्श लिपि है– हां, इसमें जब भी संशोधन की बात उठी संशोधन किया गया। रोमन इस दृष्टि से श्रेष्ठ है क्योंकि वहां शिरोरेखा का कोई औचित्य नहीं है? - कालक्रम की दृष्टि से भारत की अन्य प्रादेशिक लिपियां देवनागरी की ऋणी हैं। यदि देवनागरी आदर्श ना बनती तो शायद भारतीय भाषाएं इस लिपि को कदापि ग्रहण ना करती।
स्पष्टता आदर्श लिपि का गुण है, सुंदरता आदर्श लिपि का अन्यतम गुण है। विभाजन या बिखराव नगरी लिपि में कहीं नहीं है। - आदर्श लिपि वर्णमाला को देखने से उसकी कथा प्रस्तुत कर देती है। नागरी वर्णमाला बनावटी नहीं वास्तविक है, वैज्ञानिक है उच्चरित ध्वनियों के अनुकूल है। अब सरल वर्णमाला को भी आदर्श ना माना जाए तो भला संभव क्या है पूर्णता क्या है इसे स्पष्ट करना आवश्यक है।
- आदर्श लिपि इसलिए भी देवनागरी प्रतिष्ठित है, शिक्षित, सभ्य और सम्मान्य यथाशक्ति और यथा रुचि इसे जीवन में पढ़ने– लिखने में अपनाते हैं।
स्वरों का और व्यंजनों का तालमेल आदर्श लिपि की वैज्ञानिकता को सिद्ध करता है।
उपर्युक्त समस्त गुण जिस लिपि को अनुकरणीय अथवा आदर्श बनाते हैं अथवा आदर्श के निकट स्थापित करते हैं,
निसंकोच देवनागरी सच्चे अर्थों में अधिकारिणी है।
स्थिरीकरण:–
आदर्श लिपि में सदैव सुधार को लेकर भाषा वैज्ञानिक इस लिपि के स्थिरीकरण को लेकर प्रयत्नशील रहे हैं कुछ अक्षरों के एक से अधिक रूप प्रचलित हैं जिनमें किसी एक रूप में स्थिर हो जाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।
मूल रूपों में भिन्नता :–
इनमें से रेखांकित वर्ण और उनका प्रयोग मानक होना चाहिए।
जो रूप प्रचलित हैं उन्हें प्रयास करना चाहिए मानवता के धरातल पर अभिव्यक्त न किया जाए।
निष्कर्ष :–
- लिपि की उत्पत्ति और उसके विषय में भाषा वैज्ञानिकों के कथन भिन्न हैं किंतु सभी भाषा के उपरांत लिपि का अस्तित्व और इसकी उपयोगिता निसंकोच मानते हैं।
- लिपि के विकास की भाषा वैज्ञानिकों ने यह अवस्थाएं मानी हैं–प्रतीक लिपि, चित्र लिपि, भाव लिपि, विचार लिपि और ध्वनि लिपि।
इसमें प्रतीक लिपि और विचार लिपि का समावेश लिपि विशेषज्ञ अन्य लिपियों में समाहित मानते हैं। - सैंधव लिपि भारत की आदि और प्राचीन लिपि है। ब्राह्मी और खरोष्ठी प्राचीन तो है किंतु सैंधव लिपि से ही परोक्ष साम्य रखती है। इस बारे में और अधिक जानकारी : सैंधव, ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि – Unvoiced Media and Entertainment
- भारत की आधुनिक लिपियों का विकास ब्राम्ही लिपि से हुआ है। इनमें देवनागरी लिपि प्रचार और प्रसार की दृष्टि से प्रमुख लिपि है और संविधान में इसका स्पष्ट उल्लेख है।
इसी के साथ लिपि की कहानी का हम समापन करते हैं। आप सब अपना स्नेह बनाए रखें।
स्त्रोत–
भाषा विज्ञान – डॉ. भोलानाथ तिवारी
लिपियों की कहानी – गुणाकर मुले
धीरेंद्र वर्मा, उदयनारायण तिवारी, बाबूराम सक्सेना, डॉ. मुकेश अग्रवाल, डॉ. पुनीत चांदला जैसे आदि विद्वानों के विचार हैं।
Indian Classical Literature – Unvoiced Media and Entertainment
About The Author(s)
मेरा नाम अविरल अभिलाष मिश्र है।
मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी (सांध्य) कॉलेज से स्नातक किया है, वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस से परास्नातक कर रहा हूं।
नीलंबरा (कॉलेज मैगज़ीन) का संपादक भी रहा हूं।
इस समय साऊथ कैंपस हिंदी विभाग का छात्र प्रतिनिधि हूं तथा अनवॉइस्ड मीडिया के हिंदी संपादक के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा हूं।
सादर!!