“अनसुनी आवाज”

किताबों की आवाज़ को सुनने वाला
सुनकर के उसे गुनगुनाने वाला ,
विद्वान हो सकता है,
पर जब तक विद्वता बांटी नही किसी को ,
उसे खुद पर खुदा से ज्यादा अंहकार हो सकता है ,,
किताबों का राज,जो दफ़न है इनमें सदियों से,
शुरू हुआ किसी राजा या सुंदर सी परियों से,,
कोई कर्मपुरूष ही, उस राज को खाश कर सकता है ,,
किताबों मे छिपी वो खामोश आवाजें,,
जिसे गूंगा पढे व बहरा सुन सकता है,,
जो फैलाए चहूंओर इन किताबों का मर्म ,
वो जमाने में कोई फरिश्ता हो सकता है,,,                                       

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