बचपन उधार रखके, चार पैसे कमाता हूं,
छोटू है नाम मेरा, घर का बड़ा हूं मैं ।
सुबह उठता हूं तो, स्कूल नहीं काम पे जाता हूं ।
छोटू है नाम मेरा, घर का बड़ा हूं मैं ।
तैयार करती है मां हर सुबह मुझे,
गाल दबा कर जो बाल काढ़ा करती है,
बेबसी से देखती है मुझे,
हसता हूं मैं,
वो भी मुस्कुराती है,
झिलमिलाती आंखों में समंदर लिए ।
फिर सहेज के रखता हूं बचपन,
शरारतें,
नादानियां और
हसरतें हज़ार उस पुरानी अलमारी में,ओ
ढ़तु धता हूं दुनियादारी का लिबास, जिम्मेदारियों की गठरी,
एक बनावटी मुस्कान, और ,
ज़िंदगी कमाने निकाल जाता हूं,
छोटू है नाम मेरा, घर का बड़ा हूं मैं ।
किसी ढाबे में, सड़क पे कई जगह मिल जाता हूं,
छोटू है नाम मेरा, घर का बड़ा हूं मैं ।