“मेहनतकश मजदूर”

~~•• मेहनतकश मजदूर ••~~

हर क्रांति, हर वार में,
इतिहास के हर पन्ने के सार में,
मेहनतकश मजदूर ने ही मार खाई है,
सबसे ज्यादा जान इसी ने गवाई है,
खानाबदोश -सा जीवन जीता,
दर-दर की ठोकरें खाता,
दो वक्त की रोटी लाने में,
अपने घर का सपना सजाने में!!

अब तो कोरोना महामारी ने भी,
हैं, इसी को घेरा,
चल पड़ा वो भूखा -प्यासा,
कहाँ बसाऐ वो अपना रैन-बसेरा,
सिर पर बिस्तर-बोरा बांधा,
नन्हें -मुन्हें चिरागो से भरा कांधा,
इस लॉकडाउन की खाई में,
इसी दर्द की गहराई में,
हर क्रांति, हर वार में,
इतिहास के हर पन्ने के सार में,
मेहनतकश मजदूर ने ही मार खाई है,
सबसे ज्यादा जान इसी ने गवाई है!!

कभी झुग्गियों में, तो कभी फुटपाथों पर,
जीवन अपना जीता हैं,
लाल किला हो, या ताजमहल हो,
कड़ी धूप में पसीना बहाता,
घुट-घुट कर वो आंसू पीता,
इन्हीं इमारतों का हर रंग रचाता,
फिर भी ना समझे कोई दर्द इसका,
इस लॉकडाउन की खाई में,
इसी दर्द की गहराई में,
हर क्रांति, हर वार में,
इतिहास के हर पन्ने के सार में,
मेहनतकश मजदूर ने ही मार खाई है,
सबसे ज्यादा जान इसी ने गवाई है!!

मीलों दूरी वो नाप रहा है,
रोटी के लाले पड़े है,
पैरों में छाले भरे है,
फुटपाथ उसका बिस्तर हैं,
पत्थर उसका तकीया हैं,
हर रात वो काट रहा है,
इस लाॅकडाउन की खाई में,
इसी दर्द की गहराई में,
हर क्रांति, हर वार में,
इतिहास के हर पन्ने के सार में,
मेहनतकश मजदूर ने ही मार खाई है,
सबसे ज्यादा जान इसी ने गवाई है!!

आज भारत के इन मंदिरों में,
क्या दुबारा इन भक्तों का मेला भर पाएगा?
क्या दुबारा उम्मीदों के आँगन को सींच पाएगा?
नष्ट हुई तानाशाही,
अब तो गणतंत्र की सरकार हैं,
थके -हारे इस मजदूर को,
क्या समान अधिकार मिल पाएगा?
राख हो ग्ई जिंदगी इसकी,
धरती माँ का ये अन्नपुत्र,
क्या दुबारा खिल-खिलाएगा?
इस लाॅकडाउन की खाई में,
इसी दर्द की गहराई में,
हर क्रांति, हर वार में ,
इतिहास के हर पन्ने के सार में,
मेहनतकश मजदूर ने ही मार खाई है,
सबसे ज्यादा जान इसी ने गवाई है!!

धर्म-जातिवाद के मुद्दों से बहलाकर,
चुनावों के लिए इनको वोट बैंक बनाया जाता हैं,
फ्री होता है,खाना-पीना और नाश्ता,
क्या अब इनको कोई दिखलाएगा राश्ता?
CAA, राम मंदिर, आतंकवाद और राष्ट्र वाद के मुद्दों पर,
तो, बहुत सवाल उठाऐ हैं,
अब कोरोना महामारी में,
क्या मजदूरों का पलायन रुक पाएगा?
इस लाॅकडाउन की खाई में,
इसी दर्द की गहराई में,
हर क्रांति, हर वार में,
इतिहास के हर पन्ने के सार में,
मेहनतकश मजदूर ने ही मार खाई है,
सबसे ज्यादा जान इसी ने गवाई है!!

जिन हाथों ने बनाऐ, ये मशीनी पुर्जे,
वो ही हुऐ शिकार इसके,
घर की आस में, सो गये रेल पटरियों पर,
दुर्घटना में मजदूर मरे,
हस्तियों के तो, किस्से भरे,
क्या अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर नाम इनका आएगा?
क्या ये लाचार मजदूर अपने घर पहुँच पाएगा?
क्या इनके चिरागो की खामोश निगाहें कोई पढ़ पाएगा?
इस लाॅकडाउन की खाई में,
इसी दर्द की गहराई में,
हर क्रांति, हर वार में,
इतिहास के हर पन्ने के सार में,
मेहनतकश मजदूर ने ही मार खाई है,
सबसे ज्यादा जान इसी ने गवाई है!!

About The Author(s)

Share Your Voice

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *