एक सुखी- समृद्ध देश में ये कौनसी आफत आई है,
लगता है अब तबाही की,शुरुआत हो आई है।।
लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में, जाति- धर्म – भेदभाव की
ये किसने पहचान करवाई है।
लगता है अब तबाही की,शुरुआत हो आई है।।-2
सोने की चिड़िया वाले इस देश में,
ये दरिद्रता किसने फैलाई है,
पहले धर्म ने काटा देश को अब तो और बड़ी शामत आई है
बंट चुका जो देश पूरा, अब किसे बांटने आई है
लगता है अब तबाही की,शुरुआत हो आई है।।
अजीबो – गरीब वाइरस ने कैसी बदहवासी मचाई है।
CAA के विरोध ने जाने कितनी निर्दोष जाने गवाई है
मर ही गयी है अब मानो इंसानियत सब मे,
भगवान ये कैसी दुनिया तूने दिखाई है।
लगता है अब तबाही की,शुरुआत हो आई है।।
देश में तांडव-सा आतंक जो मचाई है।
लगता है अब तबाही की,शुरुआत हो आई है।।
धूल धुएं से सना है देश हमारा, साईबर लूट ने झांसा मारा
प्रलय काल की खबर है छाई, प्रदूषण की चिंता है सताई
दर्द सहते गरीबों के घर, अमीरों की झोली यूँही भरती ही पाई है
हिन्दू – मुस्लिम एकता के सूत्र पर, राजनीति की काली परछाई नजर आईं है।
लगता है अब तबाही की,शुरुआत हो आई है।।
तकनीकी ने जो पैर पसारे
प्रकृति से छेड़छाड़ कर,
अम्बर से पानी बरसाया,
बिन बादल रसायन डालकर
औद्योगिकी की होड़ में, वन- पहाड़ो की मौत आई है,
स्वार्थी सी दुनिया अपने मतलब को, करती दिन ब दिन खुदाई है
धूल – धुआं, बाढ़- भूकंप से, पृथ्वी अपना रोष जताई है।
मानो प्रकृति भी अब अपने क़हर पर आईं है।
लगता है अब तबाही की, शुरुआत हो आई है।।-2
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