देश के जवान वीरों का शौर्य देशवासियों के उमंग का ही पुन्जिभूत रूप है। कारगिल में यही उमंग पुंज वीरों के अनुपम शौर्य व बलिदान से अमर गाथा बन चुका है। जिसे कह– सुनकर हर देशवासी गर्व से रोमांचित हो जाता है।
इसी संदर्भ में महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की कुछ पंक्तियां बरबस ही निकल पड़ती हैं:–
वीरों का कैसा हो वसंत?
आ रही हिमाचल से पुकार,
है उदधि गरजता बार-बार,
प्राची, पश्चिम, भू, नभ अपार,
सब पूछ रहे हैं दिग्-दिगंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
फूली सरसों ने दिया रंग,
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग,
वधु-वसुधा पुलकित अंग-अंग,
हैं वीर वेश में किंतु कंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
भर रही कोकिला इधर तान,
मारू बाजे पर उधर गान,
है रंग और रण का विधान,
मिलने आये हैं आदि-अंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
गलबाँहें हों, या हो कृपाण,
चल-चितवन हो, या धनुष-बाण,
हो रस-विलास या दलित-त्राण,
अब यही समस्या है दुरंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
कह दे अतीत अब मौन त्याग,
लंके, तुझमें क्यों लगी आग?
ऐ कुरुक्षेत्र! अब जाग, जाग,
बतला अपने अनुभव अनंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
हल्दी-घाटी के शिला-खंड,
ऐ दुर्ग! सिंह-गढ़ के प्रचंड,
राणा-ताना का कर घमंड,
दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
भूषण अथवा कवि चंद नहीं,
बिजली भर दे वह छंद नहीं,
है क़लम बँधी, स्वच्छंद नहीं,
फिर हमें बतावे कौन? हंत!
वीरों का कैसा हो वसंत?
वीरों के प्रति कवयित्री की यह ललकार आज भी कानों में उतनी ही गूंज पैदा करती है जितनी की उस महान आत्मा की इच्छा रही होगी और यहीं से आज का जवान, वीर योद्धा अपार जज्बा लेकर देश के लिए कुछ भी कर गुजरने की गर्जना भरता है फिर उसका बिरोचित कर्म नए-नए उपमान गढ़कर देशवासियों के लिए अनुपम शौर्य गाथा बन ही जाता है।
!!जय हिंद जय भारत!!
कारगिल विजय दिवस की हार्दिक, आत्मिक शुभकामनाएं।।
About The Author(s)
मेरा नाम अविरल अभिलाष मिश्र है।
मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी (सांध्य) कॉलेज से स्नातक किया है, वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस से परास्नातक कर रहा हूं।
नीलंबरा (कॉलेज मैगज़ीन) का संपादक भी रहा हूं।
इस समय साऊथ कैंपस हिंदी विभाग का छात्र प्रतिनिधि हूं तथा अनवॉइस्ड मीडिया के हिंदी संपादक के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा हूं।
सादर!!