सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की 3 प्रसिद्ध कविताएं |

प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि जिनकी लेखनी में अत्यंत धार है, व्यंग्य के क्षेत्र में अद्भुत रूप से लेखनी चलाने वाले आदरणीय सर्वेश्वरदयाल सक्सेना जी को उनके जन्मदिवस पर उन्हीं के शब्दों में सादर नमन।
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के

आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियां खुलने लगीं गली-गली
पाहुन ज्यों आए हों गांव में शहर के।

पेड़ झुक झांकने लगे गरदन उचकाए
आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए
बांकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूंघट सरके।

बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।

क्षितिज अटारी गदराई दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’
बांध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।

पाठशाला खुला दो महाराज

“पाठशाला खुला दो महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे!

आम का पेड़ ये
ठूंठे का ठूंठा
काला हो गया
हमरा अंगूठा

यह कालिख हटा दो महाराज
मोर जिया लिखने को चाहे
पाठशाला खुला दो महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे!

’ज’ से जमींदार
’क’ से कारिन्दा
दोनों खा रहे
हमको जिन्दा

कोई राह दिखा दो महाराज
मोर जिया बढ़ने को चाहे
पाठशाला खुला दो महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे!

अगुनी भी यहाँ
ज्ञान बघारे
पोथी बांचे
मन्तर उचारे

उनसे पिण्ड छुड़ा दो महाराज
मोर जिया उड़ने को चाहे
पाठशाला खुला दो महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे!”

भेड़िया

एक

भेड़िए की आँखें सुर्ख़ हैं।

उसे तब तक घूरो
जब तक तुम्हारी आँखें
सुर्ख़ न हो जाएँ।

और तुम कर भी क्या सकते हो
जब वह तुम्हारे सामने हो?

यदि तुम मुँह छिपा भागोगे
तो भी तुम उसे
अपने भीतर इसी तरह खड़ा पाओगे
यदि बच रहे।

भेड़िए की आँखें सुर्ख़ हैं।
और तुम्हारी आँखें?

दो

भेड़िया ग़ुर्राता है
तुम मशाल जलाओ।
उसमें और तुममें
यही बुनियादी फ़र्क़ है

भेड़िया मशाल नहीं जला सकता।

अब तुम मशाल उठा
भेड़िए के क़रीब जाओ
भेड़िया भागेगा।

करोड़ों हाथों में मशाल लेकर
एक-एक झाड़ी की ओर बढ़ो
सब भेड़िए भागेंगे।

फिर उन्हें जंगल के बाहर निकाल
बर्फ़ में छोड़ दो
भूखे भेड़िए आपस में ग़ुर्राएँगे
एक-दूसरे को चीथ खाएँगे।

भेड़िए मर चुके होंगे
और तुम? 

तीन

भेड़िए फिर आएँगे।

अचानक
तुममें से ही कोई एक दिन
भेड़िया बन जाएगा
उसका वंश बढ़ने लगेगा।

भेड़िए का आना ज़रूरी है
तुम्हें ख़ुद को चहानने के लिए
निर्भय होने का सुख जानने के लिए
मशाल उठाना सीखने के लिए।

इतिहास के जंगल में
हर बार भेड़िया माँद से निकाला जाएगा।
आदमी साहस से, एक होकर,
मशाल लिए खड़ा होगा।

इतिहास ज़िंदा रहेगा
और तुम भी
और भेड़िया?


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About The Author(s)

मेरा नाम अविरल अभिलाष मिश्र है।
मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी (सांध्य) कॉलेज से स्नातक किया है, वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस से परास्नातक कर रहा हूं।
नीलंबरा (कॉलेज मैगज़ीन) का संपादक भी रहा हूं।
इस समय साऊथ कैंपस हिंदी विभाग का छात्र प्रतिनिधि हूं तथा अनवॉइस्ड मीडिया के हिंदी संपादक के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा हूं।
सादर!!

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