हाँ! मैं अंतर्मुखी हूं।
हाँ! मैं अंतर्मुखी हूं।
थोड़ा कम बोलती हूं, पर समझती बहुत हूं।
खुद में रहना अच्छा लगता है, पर खुदगर्ज नहीं हूं।
गलती से गलती हो जाए और दिल दुख जाए किसी का,
उससे ज्यादा दुःखी खुद हो जाया करती हूं।
हाँ! मैं अंतर्मुखी हूं।
अकेलापन मानों मेरे हर सवाल का जवाब हो।
लोगो की भीड़ मै असहज हो जाती हूं,
पर कभी कभी बोलना भी चाहतीं हूं।
कहती कुछ नहीं पर यक़ीन मानिये बोलती बंद कर सकती हूं।
हाँ! मैं अंतर्मुखी हूं।
दोस्त कम ही रखे है मैने, किताबो से यारी है।
दोस्त मेरे कहते है मुझसे, बोलती क्यों नहीं हो तुम।
कहती नहीं कुछ कभी, बस थोड़ा मुस्कुरा देती हूं।
हाँ! मैं अंतर्मुखी हूं।
कहती नहीं कुछ भी किसी से, पर बोलना होता है मुझे।
कहना होता है मुझें भी, की कोई है जो मुझे पसंद हैं।
कोई है जिससे आंखे मिलाना चाहती हूं,
उसे बताना चाहती हूं कि तुम पसंद हो मुझे।
हाँ! मैं अंतर्मुखी हूं।
अकेले रहना पसंद है मुझे, यह खुद चुना है मैने।
उम्मीदें नहीं है मुझे किसी से भी, खुद पे भरोसा ही इतना किया है।
उम्मीदो का टूटना और बिखरकर के रोना दोनों खूब देखे है मैने।
हाँ! मैं अंतर्मुखी हूं।
बुरी नहीं हूं मैं, दिल साफ है बड़ा मेरा।
अलग रहना अच्छा सा लगता है मुझे।
लोगो से मेलजोल कम, मगर अहसास दोस्ती का सच्चा है मेरा।
शांत रहती हूँ, सबकी सुनती हूँ,
हाँ! मैं अंतर्मुखी हूं।
-Anil Jangir